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Know About Abraham Lincoln

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 अब्राहम लिंकन के पिता जूते बनाते थे, जब वह राष्ट्रपति चुने गये तो अमेरिका के अभिजात्य वर्ग को बड़ी ठेस पहुँची! सीनेट के समक्ष जब वह अपना पहला भाषण देने खड़े हुए तो एक सीनेटर ने ऊँची आवाज़ में कहा, मिस्टर लिंकन याद रखो कि तुम्हारे पिता मेरे और मेरे परिवार के जूते बनाया करते थे! इसी के साथ सीनेट भद्दे अट्टहास से गूँज उठी! लेकिन लिंकन किसी और ही मिट्टी के बने हुए थे! उन्होंने कहा कि, मुझे मालूम है कि मेरे पिता जूते बनाते थे! सिर्फ आप के ही नहीं यहाँ बैठे कई माननीयों के जूते उन्होंने बनाये होंगे! वह पूरे मनोयोग से जूते बनाते थे, उनके बनाये जूतों में उनकी आत्मा बसती है! अपने काम के प्रति पूर्ण समर्पण के कारण उनके बनाये जूतों में कभी कोई शिकायत नहीं आयी! क्या आपको उनके काम से कोई शिकायत है? उनका पुत्र होने के नाते मैं स्वयं भी जूते बना लेता हूँ और यदि आपको कोई शिकायत है तो मैं उनके बनाये जूतों की मरम्मत कर देता हूँ! मुझे अपने पिता और उनके काम पर गर्व है! सीनेट में उनके ये तर्कवादी भाषण से सन्नाटा छा गया और इस भाषण को अमेरिकी सीनेट के इतिहास में बहुत बेहतरीन भाषण माना गया है और उसी भाषण से ए

The Story is Old but Still Relevant Today

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 एक होस्टल कैंटीन वाले के रोज़-रोज़     नाश्ते में खिचड़ी दे देने से परेशान.....???       85 छात्रों ने होस्टल वार्डन से       शिकायत कर दी, और     बदल-बदल के नाश्ता देने को कहा...     100 में से सिर्फ 15 छात्र ऐसे थे, जिनको खिचड़ी बहुत पसंद थी,        और वो छात्र चाहते थे, कि खिचड़ी तो रोज़ ही बने..?             बाकी के 85 छात्र परिवर्तन चाहते थे....          वार्डन ने वोट करके     नाश्ता तय करने को कहा कि जिसे जो चाहिए वो लिखो वोट में गिना जाएगा         उन 15 छात्रों ने, जिनको ...            खिचड़ी बहुत पसंद थी,            खिचड़ी के लिए वोट किया.             बाकी बचे 85 लोगों ने     आपस में कोई सामंजस्य नहीं रखा,    और कोई वार्तालाप भी नहीं किया,     और अपनी बुद्धि एवम् विवेक से      अपनी रूचि अनुसार वोट दिया.   14 ने छोले भटूरे,   13 ने डोसा चुना,   12 ने परांठा,   11 ने रोटी,   10 ने ब्रेड बटर,   9 ने नूडल्स,   8 ने पूरी सब्जी, और 8 ने कहा कि रोज अलग डिस का नाश्ता मिले, को वोट दिया.        🤔  अब सोचो  🤔          क्या हुआ होगा ?        उस कैंटीन में आज भी  वो 85 छात्र, रोज़ खिचड़ी ही खाते ह

This Picture is Really Amazing

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 ये तस्वीर ऐतिहासिक है.. इस तस्वीर को आने वाली पीढ़ियां सम्भाल कर रखे इसे भूले नही.. ये भारत की असल तस्वीर है.. अगर आप फुरसत में कभी सोचते हो कि भारत मे वैज्ञानिक सोच क्यों नही पनपी ..? यहां के लोगो में विज्ञान के प्रति उदासीनता क्यों है.?  तो उसका कारण आप इस तस्वीर में देख ले..आपको जवाब मिल जाएगा .. भारत बूढ़ा देश है.. ना जाने कब से ये बूढ़ा हो चुका  ये इसको भी नही पता.. भारत का नौजवान भी बूढ़ा है.. शरीर से न सही पर मन विचार व सोच से ये बूढ़ा ही है.. ये भारत के पतन की कहानी बयां करने को काफी है.. बूढ़ा इस मायने में कि ये पीछे की ओर देखता है..भविष्य की ओर नही ये राम राज्य लाने की बात करता है  कोई पूछे इनसे कि राम राज्य अगर इतना ही अच्छा होता  तो कभी जाता ही क्यों...? लेकिन राम राज्य गया न सिर्फ रामराज गया बल्कि राज्य भी गया और गुलाम भी बने.. क्या हमने कभी सोचा कि ऐसा क्यों कर हुआ..? हम कह देंगे यही भाग्य में बदा था.. बस चर्चा खत्म.. The End भारत नौकर बनने को उत्सुक है मालिक बनने को नही.. मालिक बनने की योग्यता रखता है या नही ये इसे भी नही पता.. जैसे इसके लक्षण है.. और ये सोचता भी नही.. इसलिए

Villagers not Always Wrong | Dahariyapur Village Bidhuna

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नमस्कार दोस्तों, मैं Ravi Kant Pal from, Dahariyapur Village Bidhuna Auraiya (Uttar Pradesh). I have completed my schooling from UP board Allahabad. I moved to Delhi, where I have done my graduation degree (BCA) from MDU Rohtak Haryana and a master degree (MCA) from Integral University Lucknow Uttar Pradesh. I am a Digital Marketer in Delhi. I am writing here an essay on my village in Hindi हमारे गाँव का नाम डहरियापुर है। इसमें लगभग 2000 लोग रहते हैं। ज्यादातर ग्रामीण किसान हैं। यहां लगभग साठ साल पहले मेरे दादा द्वारा स्थापित एक छोटा सा घर है।  हम अपने खेतों की खेती के लिए नहर के पानी का उपयोग करते हैं।  हम अपने पीने और खाना पकाने के पानी को नल से लेते हैं।  गलियां चौड़ी और साफ हैं। पक्के मकान हैं जिनमें बिजली के साथ-साथ पानी के नल भी हैं।  यह अंदर से काफी साफ है, और गंदगी के ढेर गाँव के बाहर ही देखे जा सकते हैं।  गर्मियों और बरसात के मौसम के दौरान, हमारे घरों में बहुत सारे मच्छर होते हैं जो बहुत परेशान करते हैं।  ज्यादातर लोग किसान हैं। इसमें तीन दूधिया, एक सुनार, एक दर्जी और दो दुकान